भारत का सिविल सोसाइटी क्षेत्र मॉनिटरिंग, इवैल्यूएशन और लर्निंग (MEL) को कैसे नए सिरे से समझ और इस्तेमाल कर रहा है।

अब MEL केवल फॉर्म भरने या रिपोर्टिंग का काम नहीं रह गया है। देश के कई संगठन इसे अपने काम की दिशा तय करने, सही समय पर फैसले लेने, और समुदायों की ज़रूरतों को समझने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।

हमने 175+ संगठनों से बात की यह समझने के लिए कि वे कैसे MEL को अपनी ज़मीनी हकीकतों और मिशन के मुताबिक ढाल रहे हैं।

मुख्य जानकारियाँ

डेटा तो इकट्ठा हो रहा है, लेकिन ज़्यादा इस्तेमाल नहीं हो पा रहा

73% डेटा केवल डोनर रिपोर्टिंग में इस्तेमाल होता है।

सिर्फ 18% डेटा का इस्तेमाल संगठन अपने अंदर के फैसलों के लिए करता है।

केवल 6% डेटा समुदाय के साथ बातचीत या जानकारी साझा करने में काम आता है।

संसाधनों और टीम की कमी एक बड़ी चुनौती है

59% संगठन अपने प्रोग्राम बजट का सिर्फ 5% या उससे कम हिस्सा MEL पर खर्च करते हैं।

42.5% संगठन ऐसे हैं जहाँ MEL का काम प्रोग्राम टीम ही करती है—अलग MEL स्टाफ नहीं होता।

छोटे और समुदाय-आधारित संगठनों में, 39% ने बताया कि उनकी MEL टीम में सिर्फ 1 या 2 लोग हैं।

मुख्य जानकारियाँ

डिजिटल उपायों का इस्तेमाल बढ़ा है, लेकिन अभी भी सीमित है।

ज़्यादातर संगठन MEL के लिए Excel, Google Forms और WhatsApp जैसे आसान टूल्स का इस्तेमाल करते हैं। 68% संगठन इन्हीं पर निर्भर हैं।

10.3% संगठन नए AI टूल्स जैसे ChatGPT का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उतने ही अभी भी पूरी तरह मैनुअल तरीके से काम कर रहे हैं।

समुदाय से बातचीत अक्सर एकतरफा होती है—उनकी राय से प्रोग्राम तय करना या बनाना बहुत कम होता है।

ज़मीनी स्तर की सूझबूझ से चुनौतियों का हल निकल रहा है

साथी संगठनों से सीखना, नेतृत्व की पहल पर नए प्रयोग करना, और कहानियों के ज़रिए फीडबैक लेना—ये सब MEL को ज़मीनी और मज़बूत बना रहे हैं।

कई संगठन डोनर द्वारा दिए गए फॉर्मेट को अपने काम लायक टूल्स में बदल रहे हैं।

जो डेटा इकट्ठा होता है, उसे फील्ड में तुरंत फैसले लेने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

कहाँ कमी महसूस हुई (Gaps Identified)

सीखने को उतनी अहमियत नहीं दी जा रही है
MEL ज़्यादातर मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन तक सीमित है। जबकि सीखना, काम को बेहतर बनाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है।

भागीदारी कम और एकतरफा है

81.8% संगठन अपनी रिपोर्ट या जानकारी समुदाय के साथ साझा तो करते हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में समुदाय को यह समझने या इस पर राय देने का मौका नहीं मिलता।

डिजिटल तरीकों से नया भेदभाव बढ़ सकता है

पढ़ने-लिखने की क्षमता, भाषा की समझ और तकनीकी पहुँच की कमी की वजह से फील्ड में काम करने वाले लोग और हाशिये पर रहने वाले समुदाय पीछे छूट सकते हैं।

मूल्यांकन (evaluation) अब भी सिर्फ गिनती पर टिका है, असर पर नहीं

जैसे-जैसे काम का असर बढ़ता है (जैसे लैंगिक समानता में बदलाव), वैसे बदलाव आमतौर पर सामान्य आंकड़ों में दिखते ही नहीं।

सकारात्मक बदलाव (Promising Shifts)

रिपोर्टिंग से सीख की ओर
अब कई संगठन हर तीन महीने में ‘रुक कर सोचने’ (pause-and-reflect) वाले सेशन करते हैं, जिससे काम की योजना में सीख को शामिल किया जा सके।

कागज़ से साथियों की पहल तक
अब MEL सिर्फ फॉर्म और रिपोर्ट तक सीमित नहीं है। समुदाय द्वारा बनाए गए इंडिकेटर, लोकल ऑडिट और आपसी सीखने के नेटवर्क जैसे तरीके इसे ज़्यादा ज़मीनी और असरदार बना रहे हैं।

ऊपर से नीचे के सिस्टम से मेंटरशिप की ओर
युवा साथी तकनीक के इस्तेमाल में आगे बढ़ रहे हैं, और नए लीडर्स को MEL की भूमिका में सिखाया और तैयार किया जा रहा है—जिससे संगठन की ताक़त लंबे समय तक बनी रहे।

सुझाव और आगे का रास्ता

सिर्फ मापने के लिए नहीं, सीखने के लिए डिज़ाइन करें
निश्चित (fixed) इंडिकेटर से आगे बढ़कर ऐसे सिस्टम बनाएं जो ज़मीन पर हो रहे बदलावों के साथ बदल सकें।

सिर्फ नियम पूरे करने के लिए नहीं, क्षमता बढ़ाने में निवेश करें
टीमों को विश्लेषण (analysis) करने की समझ दें, कई भाषाओं में टूल्स दें, और ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे लोगों की सीखने की पहल को मज़बूती दें।

साथी नेटवर्क को MEL का हिस्सा मानें
ग़ैर-सरकारी, आपसी बातचीत और साझेदारी को ज्ञान और नए विचारों के वैध मंच की तरह पहचानें और समर्थन दें।

साझा टूल्स बनाएं, ताकि सभी की समझ जुड़ सके
ऐसे प्लेटफ़ॉर्म तैयार करें जहाँ अलग-अलग क्षेत्रों के लोग अपने डेटा और अनुभव साझा कर सकें—और उसका उपयोग मिलकर कर सकें।

MEL को उपनिवेशवाद से मुक्त करें
यह सुनिश्चित करें कि समुदाय अपने डेटा का मालिक हो—क्या मापा जाए, क्यों और कैसे—इस पर उनकी राय और नियंत्रण हो।

सबसे ज़रूरी बात

भारत के सिविल सोसाइटी संगठन अब MEL को बाहर से नहीं, अपने अंदर से बदलने के लिए तैयार हैं।
उन्हें ज़रूरत है धैर्य के साथ निवेश (patient capital), थोड़ी स्थितियों के अनुसार ढलने की क्षमता (flexibility) और सोच में बदलाव की—जहाँ नियम पूरे करने की मजबूरी ना हो, बल्कि जिज्ञासा और सीखने की भावना से काम हो।

“MEL सिर्फ ये बताने के लिए नहीं है कि क्या सफल हुआ, बल्कि यह समझने के लिए है कि वो क्यों सफल हुआ।
— एक सिविल सोसाइटी लीडर

Credits:

Creative Direction: Anubrata Basu

Technical Design: Tarun Pathak

Development: Abhishek Kumar